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मय-कदा बन गईं मस्त आँखें ज़ुल्फ़ काली घटा हो गई हैक्या हो मय का नशा ज़िंदगी में ज़िंदगी ख़ुद नशा हो गई है
देख कर काली घटा गर्दूं पे यूँ छाई हुईफिर रही है तौबा हर बोतल पे ललचाई हुई
झूम बराबर झूम शराबी झूम बराबर झूमकाली घटा है मस्त फ़ज़ा है
ज़ुल्फ़ जैसे कि उमडी हुई हो घटाज़ुल्फ़ जैसे कि हो कोई काली बला
बन बोलन लागे मोरआ घिर आई दई मारी घटा कारी बन बोलन लागे मोर
घटा बन के 'अलताफ़' रिंदों पे बरसेगुलिस्ताँ में बाद-ए-सबा बन गए तुम
गुलिस्ताँ है घटा है मैं नहीं हूँनसीम-ए-जाँ-फ़िज़ा है मैं नहीं हूँ
छाई घटा है और चमकती हैं बिजलियाँबारान-ए-नूर बरसे है हर बार हर तरफ़
बिखराए हुए गेसू आया कोई महफ़िल मेंमय-ख़ाना-ए-हस्ती पे रहमत की घटा छाई
जोश-ए-बहार है फिर काली घटा के सदक़ेज़ौक़-ए-शराब मस्ती फिर गुदगुदा रहा है
हैं इ'श्क़ के दो नग़्मे बुस्तानी-ओ-सहराईरोया तो घटा उट्ठी गाया तो बहार आई
तौबा करो तौबा कहीं मय-ख़ाने से हटतीकोड़े उसे बिजली के लगाए हैं घटा ने
पी पी पी ले ज़रा झूम केछाई है काली घटा नज़रें मिला जाम उठा चूम के
तौबा कर ज़ाहिद करूँ तौबा मैं ऐसे वक़्त मेंये बहार आई हुई ऐसी घटा छाई हुई
ज़ुल्फ़-ए-साक़ी जो परेशान हुई शाने परछा गई काली घटा झूम के मय-ख़ाने पर
सावन का महीना है छाई है घटा सर परसाक़ी की ज़रूरत है महफ़िल की तमन्ना है
काकुल जो उस की शो’ला-ए-रुख़ से सरक गईकाली घटा में साफ़ ये बिजली चमक गई
घटा है बर्क़ है साक़ी है मय है यार नहींबहार तो है मगर हासिल-ए-बहार नहीं
जाम-ए-शराब मस्त-घटा मुत्रिब-ओ-बहारसब आ चुके हैं आप के आने की देर है
घटा में बर्क़ जो चमकी तो याद आई 'अमीर'अदा किसी की वो पर्दा उठा के आने की
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