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कलाम
बंधे हैं तार अश्कों के किसी की याद में हमदम'अजब हालत है गिर्या से हमारे चश्म-ए-पुर-नम की
एम. एस. जौहर
कलाम
तिरे जल्वे की बढ़ती है लताफ़त चश्म-ए-गिर्यां मेंकि घुल कर अश्क में छुपता है वो दामान-ए-मिज़्गाँ में
मिर्ज़ा क़ादिर बख़्श साबिर
कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
मिरी ज़ीस्त पुर-मसर्रत कभी थी न है न होगीकोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
बहर-जल्वा न रुस्वा कर मज़ाक़-ए-चश्म-ए-हैराँ कोयही बातें निगाहों से गिरा देती हैं इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
शौक़-ए-नज़ारा है जब से उस रुख़-ए-पुर-नूर काहै मिरा मुर्ग़-ए-नज़र परवाना शम्अ'-ए-तूर का