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कलाम
टुक साथ हो हसरत दिल-ए-मरहूम से निकले'आशिक़ का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
चढ़ा मंसूर सूली पर जो वाक़िफ़ था वही दिलबरअरे मुल्लाँ जनाज़ा पढ़ मैं जानूँ मेरा ख़ुदा जाने
अज्ञात
कलाम
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरियान कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
थाम के दिल रह जाएँगे वो देख के मेरी मय्यत कोमेरा जनाज़ा जब कि निकल कर उन की गली से जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
थाम के दिल रह जाएँगे वो देख के मेरी मय्यत कोमेरा जनाज़ा जब कि निकल कर उन की गली से जाएगा