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कलाम
सहबा अकबराबादी
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फ़ना बुलंदशहरी
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उन को तू ने क्या से क्या शौक़-ए-फ़रावाँ कर दियापहले जाँ फिर जान-ए-जाँ फिर जान-ए-जानाँ कर दिया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
न तू माह बन के फ़लक पे रह न तू फूल बन के चमन में आये तमाम जल्वे समेट कर किसी दिल-गुदाज़-ए-फबन में आ