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कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मोहम्मद अशरफ़
कलाम
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गएतिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
कलाम
फिर बहार आई चमन में ज़ख़्म-ए-दिल आए हुएफिर मिरी दाग़-ए-जुनूँ आतिश की पर काले हुए
इमाम बख़्श नासिख़
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गयासारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया