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कलाम
सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैंबरहमन बन के ख़ुद गर्दन में हम ज़ुन्नार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
दिमाग़-ओ-रूह यकसाँ चाहिएँ इंसान-ए-कामिल मेंये क्या तक़्सीम-ए-नाक़िस है ख़ुदी सर में ख़ुदा दिल में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
जिस्म दमकता ज़ुल्फ़ घनेरी रंगीं लब आँखें जादूसंग-ए-मरमर ऊदा बादल सुर्ख़ शफ़क़ हैराँ आहू
जावेद अख़तर
कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
रूह-ए-रवाँ नग़्मा तुम नग़्मों का सोज़ साज़ मेंजान-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम जान-ए-जहान-ए-नाज़ में
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
क्या कहें मिल्लत-ओ-दीं कुफ़्र है ईमाँ अपनापेश-ए-बुत-ए-सज्दा है और दैर है ऐवाँ अपना