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कलाम
अर्ज़-ए-तमन्ना कर के गँवाया हम ने भरम ख़ुद्दारी काहो गई गो तकमील-ए-तमन्ना दिल को नदामत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
कमाल-ए-ख़स्तगी से रूह की तकमील होती हैमोहब्बत में बिगड़ना भी बना देता है इंसाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
है सोज़-ए-जाँ से ही तकमील-ए-आदमी मुम्किनवो दर्द बख़्शा के इंसाँ बना दिया तू ने
शाह अलिमुल्लाह सफ़ी
कलाम
जुज़्व-ए-ईमाँ है मोहब्बत अहल-ए-बैत-ए-पाक कीदिल में पैहम ख़्वाहिश-ए-तकमील-ए-ईमाँ चाहिए
शकील बदायूँनी
कलाम
पय-ए-तकमील ऐ 'सीमाब' आए अहल-ए-दिल कोईमैं दुनिया को हदीस-ए-ना-तमाम-ए-दिल समझता हूँ