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कलाम
ये किस बे-दर्द किस ज़ालिम पर अपना दम निकलता हैये रह रह कर कलेजा चुटकियों से कौन मलता है
अमीर मीनाई
कलाम
सहबा अकबराबादी
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
ख़ुदी से बे-ख़ुदी में आ जो शौक़-ए-हक़-परसती हैजिसे तू नीस्ती समझा है ऐ ग़ाफ़िल वो हस्ती है
अमीर मीनाई
कलाम
छलक जाए जो मेरी बे-ख़ुदी-ए-दिल का पैमानाअभी हो जाए मय-ख़ाने से बाहर राज़-ए-मय-ख़ाना
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
कहीं सोज़-ए-जिगर में वो कहीं दर्द-ए-निहाँ हो करकहीं हैं वो किसी दिल में कहीं शोर-ओ-फ़ुग़ाँ हो कर