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कलाम
मुर्शिद ओह सहेड़िये जेहड़ा दो जग ख़ुशी दिखावे हूपहले ग़म टुकड़े दा मेटे वत रब्ब दा राह सुझावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
देखो उसी के नूर से दो-जग जगमग जगमग जगमग जगमगउस के रुख़-ए-रौशन ही से तो ये सारा उजियाला है
कामिल शत्तारी
कलाम
अफ़्साना मेरे दर्द का उस यार से कह दोफ़ुर्क़त की मुसीबत को दिल-आज़ार से कह दो