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कलाम
वो मस्त-ए-नाज़ आता है ज़रा हुशियार हो जानायहीं देखा गया है बे-पिए सरशार हो जाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
रख दिया क्या सोच कर साक़ी ने दे कर जाम-ए-मयमस्त कर दे बे-पिए वो दौर-ए-साग़र और है
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
पिए तू मय तो ये तेरा लब-ए-बे-कैफ़ ऐ वाइ'ज़लब-ए-साग़र से मिल-मिल कर लब-ए-ए'जाज़ बन जाए