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कलाम
पीर मिले ते पीड़ न जावे ताँ उस पीर की धरना हूमुर्शिद मिल्याँ रुश्द न मन नूँ ओह मुर्शिद की करना हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मोहम्मद बादशाह क़ादरी
कलाम
जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दीपुरानी दोस्ती भी ताक़ में ऐ मेहरबाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
कलाम
ख़याल-ए-पीर का जिस के हुआ है दिल में नशिस्तवो तिफ़्ल ख़ूब जवाँ-बख़्त है और पीर-परस्त
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
मैं पीर-ए-इ'श्क़ हूँ मज्नूँ मुरीद है मेरावो आ'शिक़ी में ख़लीٖफ़ा रशीद है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ये करिश्मा-साज़ी हैजब से उन के हो बैठे ख़ूब सरफ़राज़ी है