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मिस्ल-ए-ख़ुशबू हुआ हूँ आवारादर बदर एक अजनबी के लिए
पीते ही मज्नूँ मैं तो हो गयादर-बदर मुझ को फिराया यार ने
मैं 'आशिक़ तिरा बा-वफ़ा ऐ पिया हूँमुझे दर-बदर पे रुलाना नहीं था
जो 'इस्मत से वहदत में रहती थी ज़ातये कसरत में वो दर बदर हो गई
दर-बदर हो के दर-ए-शाह पे जब जा पहुँचेग़म ग़लत हो गया सब रंज-ओ-मेहन भूल गए
क्यूँ फिरूँ दर बदर अब मैं जाऊँ कहाँ आप ही तो हैं ख़ालिद मिरी जान-ए-जाँमेरी क़िस्मत में 'अशरफ़' ये है आस्ताँ मैं हूँ मुख़्तस तिरे ख़लिदी के लिए
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