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बसर हम अ'जब ज़िंदगी कर रहे हैंकभी जी रहे हैं कभी मर रहे हैं
मज़ा जब है कि अपनी यूँ बसर होहरम में शाम तैबा में सहर हो
'उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहींहर शब ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
नज़र में अपने जो नूर-ए-बसर नहीं रखतेनज़र में यार है हर दम नज़र नहीं रखते
न सही चैन से बसर न हुईवो न आए तो क्या सहर न हुई
वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दोशाम ही से है ये धमकी कि सहर होने दो
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगीसुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
मेरी 'उम्र हफ़्तादा साला मियाँख़याल-ए-सनम में बसर हो गई
अपनी शब-ए-फ़िराक़ बसर होगई 'निसार'ऐसा दराज़ क़िस्सा-ए-ज़ुल्फ़-ए-दराज़ था
सिर्फ़ ग़म ख़ाक-बसर चाक-ए-गरेबाँ मुज़्तरक़ाबिल-ए-रहम है सूरत तेरे दीवाने की
इबरत से पूछ दर्द-ए-परेशानी-ए-निगाहये गर्द-ए-वहम जुज़ बसर-ए-इम्तिहाँ नहीं
बे-फ़िक्र बसर होती है इक़बाल सलामतसरकार का बंदा हूँ किसी बात का डर किया
तमाम 'उम्र बसर की सियाह-कारी में'कलीम' तुझ को ख़ुदा का भी कुछ ख़तर आया
गुलशन का होश अहल-ए-जुनूँ को भला कहाँसहरा में पड़ रहे तो बसर रात हो गई
अब शकेब-ए-दिल कहाँ हसरत ही हसरत रह गईज़िंदगी इक ख़्वाब की सूरत बसर होने लगी
'उम्र करता हूँ बसर गोशा-ए-तन्हाई मेंजब से वो रूठ गए तब से अलग बैठा हूँ
रहता हूँ चश्म-ए-अहल-ए-बसर की निगाह मेंमिलता है नुक्ता-दाँ के सुख़न में निशाँ मिरा
वही ज़ात जल्वा-गर है मेरी जिस तरफ़ नज़र हैनज़र आता सर-बसर है वहीं जल्वा-ए-ख़ुदाई
आज ख़ुम-ख़ाना-ए-वहदत से पिला दे साक़ीसर-बसर नक़्श-ए-दुई दिल से मिटा दे साक़ी
हमेशा मुश्किलों की इंतिहा होती है आसानीशब-ए-ग़म सुब्ह बन जाती है बिल-आख़िर बसर हो कर
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