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कलाम
वा'दे पे नहीं आता सच है पर याद तो उस को आती हैउस जान-ए-मोहब्बत का वा'दा बातिल भी है और बातिल भी नहीं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
हैं असली जल्वा-ए-दुनिया-ए-बातिल देखने वालेमिल कर रंग-ए-वीरानी-ओ-महफ़िल देखने वाले
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तुम अपने जलवा-ए-हर सौ को क्यों रंग ताय्युन दोहमारे वहम की किया है हक़ीक़त में न बातिल में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मोहब्बत में मज़ा है छेड़ का लेकिन मज़े की होहज़ारों लुत्फ़ हर इक शिकवा-ए-बातिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
जलाए लम'आत-ए-बर्क़-ए-वहदत ने ख़ाशाक-ए-हाय कसरततजल्ली-ए-हक़ ने फूँका बातिल चराग़ रौशन मुराद हासिल
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
यक़ीन इन्किशाफ़-ए-राज़-ए-बातिल होता जाता हैकि मेरा हर क़दम अब मील-ए-मंज़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
वहम-ए-बातिल ग़ैर से कर साफ़ दिल को 'क़ादरी'क्यूँ-कि है 'अर्श-ए-ख़ुदा दिल हाय दिल अफ़्सोस दिल