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ये बज़्म में जाम-ए-मय-ओ-साक़ी से वा'इज़ा तुझ को ज़िद 'अबस है

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

ये बज़्म में जाम-ए-मय-ओ-साक़ी से वा'इज़ा तुझ को ज़िद 'अबस है

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

MORE BYइम्दाद अ'ली उ'ल्वी

    ये बज़्म में जाम-ए-मय-ओ-साक़ी से वा'इज़ा तुझ को ज़िद 'अबस है

    कभी तू कर उन में हो के शामिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    ब-ईं तजल्ली-ओ-सादा-रूई तू हुस्न में गरचे बे-मिस्ल है

    मगर हो 'आरिज़ पे तेरे इक तिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    फ़राग़-ए-दिल से ख़ुशी मनाओ लो अब तो घी के दिए जलाओ

    कि आई 'आशिक़ की छाती पे सल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    जो कीजिए सैक़ल-ए-तबी'अत निकलता है जौहर-ए-हक़ीक़त

    कि 'शम्स' से जब कि उठ गया ज़िल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    जमाल-ए-तन्ज़ीह बहर-ए-ज़ाती है वाँ ग़ाएब है शहादत

    जलाल-ए-तश्बीह मौज-ए-साहिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    अमानत-ए-हुस्न-ओ-'इश्क़ हरगिज़ उठे अर्ज़-ओ-समा से लेकिन

    हुआ बशर जब कि उस का हामिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    बर आई ख़ूब आरज़ू-ए-गुल-गीर निकली परवाना की तमन्ना

    मूए ये होते हैं पेश-ए-महफ़िल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    तजल्ली-ए-नय्यर-ए-हक़ीक़ी से जब कि चमके ज़मीं के ज़र्रे

    ज़ुहूर-ए-हक़ हो के फिर तू कामिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    जलाए लम'आत-ए-बर्क़-ए-वहदत ने ख़ाशाक-ए-हाय कसरत

    तजल्ली-ए-हक़ ने फूँका बातिल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    तसव्वुर-ए-यार था जो दिल में भड़क उठा मिस्ल नार-ए-दर-ख़स

    जलाया 'उल्वी' का ये तन-ए-गुल चराग़ रौशन मुराद हासिल

    स्रोत :
    • पुस्तक : ख़ुमख़ाना-ए-अज़्ली (पृष्ठ 59)

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