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कलाम
फ़स्ल-ए-गुल में रंग मस्ती का जमाना चाहिएउठ के मस्जिद से सू-ए-मय-ख़ाना जाना चाहिए
इम्तियाज़ हुसैन वाक़िफ़
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
ऐ जज़्बा-ए-दिल गर मैं चाहूँ हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाएमंज़िल के लिए दो गाम चलूँ और सामने मंज़िल आ जाए
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
हर इक ए'तिबार से आज तक हूँ फ़क़त फ़रेब-ए-ख़याल मेंमिरी ज़िंदगी का शुमार है न फ़िराक़ में न विसाल में