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कलाम
‘फ़ानी’ हम तो जीते जी वो मय्यत हैं बे गोर-ओ-कफ़नग़ुर्बत जिस को रास ना आई और वतन भी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
कलाम
ये वीराना ये सन्नाटा ये वहशत-ख़ेज़ ख़ामोशीअ'ज़ीज़ों ने मिरी मय्यत को क्या समझा कहाँ रख दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
देख ले मेरी मय्यत का मंज़र लोग कांधा बदलते चले हैंएक तेरी भी डोली चली है कोई काँधा बदलता नहीं है
अज्ञात
कलाम
उस 'इश्क़ के कूचा में मिट कर बतलाया ये मिटने वालों नेदीवानों की मिस्ल-ए-परवाने मय्यत ही उठाई जाती है
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
नासिर निज़ामी
कलाम
थाम के दिल रह जाएँगे वो देख के मेरी मय्यत कोमेरा जनाज़ा जब कि निकल कर उन की गली से जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
थाम के दिल रह जाएँगे वो देख के मेरी मय्यत कोमेरा जनाज़ा जब कि निकल कर उन की गली से जाएगा