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कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मैं देखा शान अहमद की बिला-शक मेरे मुर्शिद मेंमेरा ईमान-ए-कामिल बन गया मुर्शिद की सूरत में
गुलाम रसूल नाइब
कलाम
मुर्शिद हादी सबक़ पढ़ाया पढ़यों बिना पढीवे हूउँगलियाँ विच कंनां दित्तियां, सुणयों बिना सुणीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मुर्शिद है शाहबाज़ इलाही रलया संग हबीबाँ हूतक़दीर इलाही छिक्कियां डोराँ मिलसी नाल नसीबाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ इल्ला चम्बे दी बूटी मुर्शिद मन विच लान्दा हूजिस गत इते सोहणा राज़ी ओहो गत सिखांदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कुन-फ़-यकून जदोका सुणया, डिट्ठा ओह दरवाज़ा हूमुर्शिद सदा हयाती वाला ओह ख़िज़र ते ख़्वाजा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर बूटी मुश्क मचाया जाँ फुल्लाँ ते आई हूजीवे मुर्शिद कामिल 'बाहू' जैं ईह बूटी लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
इतना डठियाँ सब्र नूँ मैं दिल होर कते वल भुजाँ हूमुर्शिद दा दीदार जो 'बाहू' मैनूँ लिख करोड़ां हजाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कल्लर वाली कुंधी नूँ चा चाँदी ख़ास बणावे हूजिस मुर्शिद इथ कुझ न कीता कूड़े लारे लावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जो दम ग़ाफ़िल सो दम काफ़िर मुर्शिद एह पढ़ाया हूसुणया सुख़न गइयाँ खुल अक्खीं चित्त मौला वल लाया हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर बूटी मुश्क मचाया जाँ फुल्लाँ ते आई हूजीवे मुर्शिद कामिल 'बाहू' जैं एह बूटी लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अपने पीर-ओ-मुर्शिद की ये करिश्मा-साज़ी हैजब से उन के हो बैठे ख़ूब सरफ़राज़ी है