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कलाम
मोहम्मद अशरफ़
कलाम
तिरे ग़म को जाँ की तलाश थी तिरे जाँ-निसार चले गएतिरी रह में करते थे सर तलब सर-ए-रहगुज़ार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
उन्हीं ख़ुश-गुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओवो जो चारा-गर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूँ दिखाओ
अज्ञात
कलाम
इन्ही ख़ुश-गुमानियों में कहीं जाँ से भी न जाओवो जो चारागर नहीं है उसे ज़ख़्म क्यूँ दिखाओ
अहमद फ़राज़
कलाम
बेदम शाह वारसी
कलाम
बहार-ए-जाँ-फ़ज़ा तुम हो नसीम-ए-दास्ताँ तुम होबहार-ए-बाग़-ए-रिज़वाँ तुम से है जे़ब-ए-जिनाँ तुम हो
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं