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कलाम
फ़ुर्क़त की हज़ारों रातों से इक रात सुहानी माँगी थी
जो फूल के बोझ से दब जाए इक ऐसी जवानी माँगी थी
अज्ञात
कलाम
आरज़ू लखनवी
कलाम
अंगड़ाई पर अंगड़ाई लेती है रात जुदाई की
तुम क्या समझो तुम क्या जानो बात मिरी तन्हाई की