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कलाम
तन मैं यार दा शहर बणाया दिल विच ख़ास मोहल्ला हूआण अलिफ़ दिल वस्सों कीती होई ख़ूब तसल्ला हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ख़ुदी ख़ुद-बीनियों की हद में दाख़िल होती जाती हैख़ुदा की मा'रिफ़त कुछ और मुश्किल होती जाती है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ये मकाँ से ता-सर-ए-ला-मकाँ उसी इक वजूद का ख़्वाब हैये ज़ुहूर दोनों जहान का रुख़ यार ही की नक़ाब है
ग़ौसी शाह
कलाम
शाह चाँद अशरफ़
कलाम
ये दिल है वो मकाँ जो ला-मकाँ वाले की मंज़िल हैवो लैला है इसी में ये उसी लैला का महमिल है