परिणाम "शीरीं"
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मोहब्बत की शीरीं नवा बन गए तुममिरी ज़ीस्त का आसरा बन गए तुम
है मिस्र में शोहरा तेरी शीरीं-दहनी कादम बंद लबों से है 'अक़ीक़-ए-यमनी का
ऐ 'शीरीं' उन के हिज्र ने आख़िर को जान लीये तो समझ चुके थे कि उस ग़म में हम नहीं
ऐ 'शीरीं' हिज्र-ए-यार में ये रोय रात-भरघर क्या कि पड़े दर-ओ-दीवार और भी
ऐ 'शीरीं' वो सौदाई हो कल मेरी तरह सेदेखे जो कोई जोशिश-ए-वहशत का असर आज
घर में मेहमान है वो रश्क-ए-क़मर 'शीरीं' केऔज पर है मिरे तालेअ' का सितारा कैसा
चाँदनी रात का फिर जाए निगाहों में समाँबाम पर अपने जो 'शीरीं' वो निगार आ जाए
ऐ 'शीरीं' कूच जानिब-ए-मुल्क-ए-'अदम है अबकब तक मैं इंतिज़ार बुत-ए-बेवफ़ा करूँ
हुक्म-ए-'शीरीं' था न हाथों में कोई मेहंदी मलेकोह पर जब तक मिरे फ़रहाद का मातम रहे
क्यूँ न हों फ़रहाद वो शीरीं अदाशर्बत-ए-दीदार पिला कर गया
ख़त्म कर 'नियाज़' अब तो जल्दी ग़ज़लये मज़मून-ए-शीरीं सुना बैठे हैं
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीबगालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ
हर-चंद मैं हूँ तूती-ए-शीरीं-सुख़न वलेआईना आह मेरे मुक़ाबिल नहीं रहा
लिखा कर तो मज़मून-ए-शीरीं 'नियाज़' अबजो शा'इर तुझे हक़ बना ही दिया है
कहीं क़ल्ब-ए-लैला में मजनूँ बसा हैकहीं 'इश्क़-ए-शीरीं को फ़रहाद का है
दस्त-ए-मातम लिए बैठी रही शीरीं अपनेतेशा अच्छा कि तिरे काम तो फ़रहाद आया
देख कर तस्वीर शीरीं ने ये हसरत से कहाहाए क्या वारफ़्तगी है सूरत फ़रहाद में
सवाल-ए-वस्ल का रूठा हुआ जिस वक़्त मनता हैकभी शीरीं कभी शकर जवाब-ए-तल्ख़ बनता है
सख़्त ख़ुद-बीं-ओ-ख़ुद-आरा है उ'रूस-ए-हस्तीये वो शीरीं है जिसे हाजत-ए-फ़रहाद नहीं
कौन है मुल्क-ए-सुख़न में उस से जो वाक़िफ़ नहींशा’इरों में नाज़िम-ए-शीरीं-बयाँ मशहूर है
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