पहलू-ए-दुश्मन में वो गुल-रू इधर मसरूर है
रोचक तथ्य
دہلی کی مشہور گائیکہ ممتاز جان نے اس غزل پر اپنی آواز دی ہے جس کی خبر ’’ارمانِ وصل‘‘ نامی گلدستہ سے ملتی ہے۔
पहलू-ए-दुश्मन में वो गुल-रू इधर मसरूर है
हिज्र में अपना दिल-ए-मुज़्तर उधर रंजूर है
जल्वा-फ़र्मा आज कोठे पर वो रश्क-ए-हूर है
तालिब दीदार कहते हैं कि शम्अ' तूर है
मेरा सानी भी वफ़ादारों में मिलना है मुहाल
बे-वफ़ाओं में जो वो यक्ता बुत-ए-मग़रूर है
किस तरह तारीकी-ए-मर्क़द का मुझ को ख़ौफ़ हो
दाग़ जो सीना में है वो रश्क-ए-चराग़-ए-तूर है
कौन है मुल्क-ए-सुख़न में उस से जो वाक़िफ़ नहीं
शा’इरों में नाज़िम-ए-शीरीं-बयाँ मशहूर है
- पुस्तक : Arman-e-Wasl (पृष्ठ 3)
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