परिणाम "सुर्ख़-रू"
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नज़र वो होके तिरा हुस्न रू-ब-रू आएजिधर भी देखो नज़र सिर्फ़ तू ही तू आए
हर दम ख़याल-ए-जानाँ आँखों के रू-ब-रू हैदिल में मेरे समा जा मुद्दत से आरज़ू है
सच कह पसंद किस की है ऐ ख़ूब-रू पसंदतुझ को अ'दू पसंद है मुझ को है तु पसंद
आईना-ए-नज़र को मैं रू-ब-रू रक्खा हूँजो देखता है मुझ को मैं उस को देखता हूँ
नुमायाँ कर दिया उस ने बहार-ए-रू-ए-ख़ंदाँ कोकि दी नग़्मे को मस्ती रंग कुछ सेहन-ए-गुलिस्ताँ को
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करतेहम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते
रू-ए-रंगीं नज़र आया तो चमन भूल गएसूँघ कर ज़ुल्फ़ की बू मुश्क-ए-ख़ुतन भूल गए
ख़याल आया जो उस मह-रू को गुल-गश्त-ए-ख़ियाबाँ कानज़र कुछ और ही आने लगा 'आलम-ए-गुलिस्ताँ का
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