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कलाम
जवानी ख़्वाब की सी बात है दुनिया-ए-फ़ानी मेंमगर ये बात किस को याद रहती है जवानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
सहर उस हुस्न के ख़ुर्शीद को जाकर जगा देखाज़ुहूर-ए-हक़ कूँ देखा ख़ूब देखा बा-ज़िया देखा
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
वही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैंजो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तक़िल का'बा बनाते हैं