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कलाम
नाँ रब्ब अर्श मुअ'ल्ला उत्ते न रब्ब ख़ाने-काबे हूना रब्ब इलम किताबीं लब्भा, न रब्ब विच महाराबे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
हक़्क़-ए-ता'ला 'अर्श पर है क्या कभी देखा गयाऔर फिर शह-रग से है नज़्दीक क्या कभी समझाया गया
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
अदा की ले रही है 'अर्श की पहलू-नशीं हो करज़मीं रौज़ा की तेरे तेरे रौज़ा की ज़मीं हो कर
बेदम शाह वारसी
कलाम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
दिल नहीं अ'र्श मगर रह-गुज़र-ए-अ'र्श तो हैदिल पे रखे नज़र इंसाँ तो फ़रिश्ता हो जाए
सीमाब अकबराबादी
कलाम
'अर्श को यूँ बनाए फ़र्श फ़र्श को यूँ बनाए 'अर्शगर्द-ए-रह-ए-वफ़ा बने दिल तेरी ख़ाक-ए-पा बने
मुनव्वर लखनवी
कलाम
फ़र्श वाले तिरी 'अज़्मत का ’उलू क्या जानेंख़ुसरवाँ 'अर्श पे उड़ता है फरेरा तेरा
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
कभी 'अर्श मेरा मस्कन कभी फ़र्श मेरा आँगनकभी जीत सामने है कभी हार सामने है