कोई दुनिया-ए-'अता में नहीं हमता तेरा
रोचक तथ्य
تضمین بر غزل مولانا احمد رضا خاں بریلوی۔
कोई दुनिया-ए-'अता में नहीं हमता तेरा
हो जो हातिम को मुयस्सर ये नज़ारा तेरा
कह उठे देख के बख़्शिश में ये रुत्बा तेरा
वाह क्या जूद-ओ-करम है शह-ए-बतहा तेरा
नहीं सुनता ही नहीं माँगने वाला तेरा
कुछ बशर होने के नाते तुझे ख़ुद-सा जानें
और कुछ महज़ पयामी ही ख़ुदा का जानें
उन की औक़ात ही क्या है कि ये इतना जानें
फ़र्श वाले तिरी 'अज़्मत का ’उलू क्या जानें
ख़ुसरवाँ 'अर्श पे उड़ता है फरेरा तेरा
जो तसव्वुर में तिरा पैकर-ए-ज़ेबा देखें
रू-ए-वश्शमस तकें मतला’-ए-सीमा देखें
क्यूँ भला अब वो किसी और का चेहरा देखें
तेरे क़दमों में जो हैं ग़ैर का मुँह क्या देखें
कौन नज़रों पे चढ़े देख के तलवा तेरा
मुझ से नाचीज़ पे है तेरी इनायत कितनी
तू ने हर गाम पे की मेरी हिमायत कितनी
क्या बताऊँ तिरी रहमत में है वुस'अत कितनी
एक में क्या मिरे 'इस्याँ की हक़ीक़त कितनी
मुझ से सौ लाख को काफ़ी है इशारा तेरा
कई पुश्तों से ग़ुलामी का ये रिश्ता है बहाल
यहीं तिफ़ली-ओ-जवानी के बिताए मह-ओ-साल
अब बुढ़ापे में ख़ुदा-रा हमें यूँ दर से न टाल
तेरे टुकड़ों पे पले ग़ैर की ठोकर पे न डाल
झिड़कियाँ खाईं कहाँ छोड़ के सदक़ा तेरा
ग़म-ए-दौराँ से जो घबराईए किस से कहिए
अपनी उलझन को बतलाईए किस से कहिए
चीर कर दिल किसे दिखलाइए किस से कहिए
किसी का मुँह तकिए कहाँ जाइए किस से कहिए
तेरे ही क़दमों पे मिट जाए ये पाला तेरा
नज़र-ए-'उश्शाक़ नबी है ये मिरा हर्फ-ए-ग़रीब
मिम्बर-ए-वा'ज़ पे लड़ते रहें आपस में ख़तीब
ये 'अक़ीदा रहे अल्लाह करे मुझ को नसीब
मैं तो मालिक ही कहूँगा कि हो मालिक के हबीब
या'नी महबूब-ओ-मुहिब में नहीं मेरा तेरा
ख़ूगर-ए-क़ुरबत-ओ-दीदार पे कैसी गुज़रे
क्या ख़बर उस के दिल-ए-ज़ार पे कैसी गुज़रे
हिज्र में इस तिरे बीमार पे कैसी गुज़रे
दूर क्या जानिए बद-कार पे कैसी गुज़रे
तेरे ही दर पे मरे बेकस-ओ-तन्हा तेरा
तुझ से हर चंद वो हैं क़द्र-ओ-फ़ज़ाइल में रफ़ी’
कर 'नसीर' आज मगर फ़िक्र-ए-रज़ा की तौसी'
ज़ीनत-ए-नुत्क़ तिरे उस का हो ये शे'र-ए-वक़ी'
तेरी सरकार में लाता है रज़ा उस को शफ़ी'
जो मिरा ग़ौस है और लाडला बेटा तेरा
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