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कलाम
लहराती है जब ज़ुल्फ़-ए-जानाँ बादल को पसीना आता हैमा'लूम ये होता है जैसे सावन का महीना आता है
नाज़ाँ शोलापुरी
कलाम
मुझे दे रहे हैं तस्कीं वो मज़ाक़-ए-ग़म बदल करनिकल आई दिल की हसरत मिरे आँसूओं में ढल कर
कामिल शत्तारी
कलाम
बदल सकती हैं कब तक़दीर-ए-आ'लम उन की तदबीरेंख़ुदा के हाथ में ख़ुद हैं ख़ुदी वालों की तक़दीरें
सीमाब अकबराबादी
कलाम
अनवर मिर्ज़ापुरी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
जो शबाब आया तो क्या कहूँ वो रात के जैसे बदल गएमग़रूर हुए हैं वो इस तरह जज़्बात के जैसे बदल गए
हुनर सिल्लोडी
कलाम
जावेद अख़तर
कलाम
जिस्म दमकता ज़ुल्फ़ घनेरी रंगीं लब आँखें जादूसंग-ए-मरमर ऊदा बादल सुर्ख़ शफ़क़ हैराँ आहू
जावेद अख़तर
कलाम
नहीं पाया मिरे रोने कूँ और फ़रियाद कूँ बादलबरस देखा झड़ी कूँ बाँध देखा कड़कड़ा देखा
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
जो बादल ख़ूब सा गरजे-ओ-पानी ज़ोर से बरसेवबा बिजली से मारी जाए महँगी पर गिरें पत्थर