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कलाम
बर्गश्ता-ओ-बद-ज़न सा पाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़अब हम तिरी महफ़िल से जाते हैं ख़ुदा हाफ़िज़
ताबिश कानपुरी
कलाम
है ज़ात कंज़-ए-मख़्फ़ी ज़ात-ए-बक़ा-ए-मिर्ज़ापाया जो 'इल्म-ए-मुतलक़ अपने में आए मिर्ज़ा
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
आंधियों और मौज-ए-तूफ़ाँ से गुज़र जाने के बा'दनाव डूबी है मिरी दरिया उतर जाने के बा'द
साग़ार सिल्लोडी
कलाम
न हुई फिर किसी आ'शिक़ पे जफ़ा मेरे बा'दबन गए दस्त-ए-सितम दस्त-ए-दुआ' मेरे बा'द
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
गुरु दर्शन भगवान का दर्शन सिफ़त में ज़ात समाई रेगुरु बिन ज्ञान नहीं भई साधो गुरु ने बात बताई रे
मीराँ भीख
कलाम
न किसी चीज़ में दिल उन का लगा मेरे बा'दयाद आती ही रही मेरी वफ़ा मेरे बा'द
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
सभी ज़ात सिफ़ात से हो निर्मल जब साधू सुन माँह ध्यान धरेसुमर सुमर सिमरन से परे नारायण हरे नारायण हरे
मीराँ भीख
कलाम
तिरी ज़ात की नहीं इब्तिदा तिरी हस्ती की नहीं इंतिहातिरे भेद का है यही पता तो जुदा नहीं में जुदा नहीं
ग़ौसी शाह
कलाम
सब का मर्जा’ बन गया है सब को ठुकराने के बा'दज़िंदगी पाई किसी ने तुम पे मर जाने के बा'द