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कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकता
इरादा सब्र का करता तो हूँ पर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हू
हू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हू
से रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हू
विच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ताबिश कानपुरी
कलाम
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
कलाम
जीवंदयाँ मर रहणा होवे ताँ देस फ़कीराँ बहिये हू
जे कोई सुट्टे गुद्दड़ कूड़ा वांग अरूड़ी रहिए हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ठान ली मैं ने भी साक़ी यहीं मर जाने की
कितनी दिलकश हैं फ़ज़ाएँ तेरे मय-ख़ाने की