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Sufinama

तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकता

ख़्वाजा मीर दर्द

तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकता

ख़्वाजा मीर दर्द

MORE BYख़्वाजा मीर दर्द

    तिरे कहने से मैं अज़-बस-कि बाहर हो नहीं सकता

    इरादा सब्र का करता तो हूँ पर हो नहीं सकता

    कहा जब मैं तेरा बोसा तो जैसे क़ंद है प्यारे

    लगा तब कहने पर क़ंद-ए-मुकर्रर हो नहीं सकता

    दिल-ए-आवारा उलझे या कसू की ज़ुल्फ़ से या-रब

    इ'लाज आवारगी का इस से बेहतर हो नहीं सकता

    मिरी बे-सब्रियों की बात में सब से वो कहता है

    तहम्मुल मुझ से भी तो हाल सुन कर हो नहीं सकता

    करे क्या फ़ाएदा नाचीज़ को तक़लीद अच्छों की

    कि जम जाने से कुछ ओला तो गौहर हो नहीं सकता

    नहीं चलता है कुछ अपना तो तेरे इ'श्क़ के आगे

    हमारे दिल पे कोई और तो दर हो नहीं सकता

    कहा मैं यूँ तो मिल जाते हो आकर बा'द मुद्दत के

    अगर चाहो तो ये क्या तुम से अक्सर हो नहीं सकता

    लगा कहने समझ इस बात को टुक तू कि जल्द इतना

    तिरे घर आने जाने में मिरा घर हो नहीं सकता

    बचूँ किस तरह मैं दर्द उस की तेग़-ए-अबरू से

    कि जिस के सामने आए कोई जाँ-बर हो नहीं सकता

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