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कलाम
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कहा जब मैं तेरा बोसा तो जैसे क़ंद है प्यारेलगा तब कहने पर क़ंद-ए-मुकर्रर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
इलाही रौज़ा-ए-ख़ैरुल-वरा पर जल्द जा पहुँचूँब-रंग-ए-गर्दिश-ए-गर्दूं ये गर्दिश मुझ को सरसर दे
अलाउद्दीन जलाली
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तुम्हें मैं जानता हूँ तुम बदलते हो हज़ारों रंगनहीं मैं ग़ैर उठा कर पर्दा-ए-रू-ए-बशर आओ
आग़ा मुहम्मद दाऊद
कलाम
न मैं आलिम न मैं फ़ाज़िल न मुफ़्ती न क़ाज़ी हूना दिल मेरा दोज़ख़ ते ना शौक़ बहिश्ती राज़ी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन