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बसर हम अ'जब ज़िंदगी कर रहे हैंकभी जी रहे हैं कभी मर रहे हैं
मज़ा जब है कि अपनी यूँ बसर होहरम में शाम तैबा में सहर हो
'उम्र जल्वों में बसर हो ये ज़रूरी तो नहींहर शब ग़म की सहर हो ये ज़रूरी तो नहीं
नज़र में अपने जो नूर-ए-बसर नहीं रखतेनज़र में यार है हर दम नज़र नहीं रखते
न सही चैन से बसर न हुईवो न आए तो क्या सहर न हुई
वस्ल की रात तो राहत से बसर होने दोशाम ही से है ये धमकी कि सहर होने दो
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगीसुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी
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