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कलाम
वही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैंजो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तक़िल का'बा बनाते हैं
कामिल शत्तारी
कलाम
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इ’श्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रहीन तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बे-ख़बरी रही
सिराज औरंगाबादी
कलाम
राह फ़क़र दा परे परेरे, ओड़क कोई न दिस्से हून उथ पढ़न पढ़ावण कोई न उथ मसले क़िस्से हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मैं लज-पालाँ दे लड़लगियाँ मिरे तूँ ग़म परे रहंदेमिरी आसाँ उम्मीदाँ दे बूटे हरे रहंदे
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
कलाम
सुण फ़रियाद पीराँ दिआ पीरा अरज़ सुणी कन धर के हूबेड़ा अड़या विच कपराँ दे जिथ मच्छ न बैहन्दे डर के हू
सुल्तान बाहू
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू