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कलाम
अब राह-ए-तसव्वुफ़ में मुम्किन है भटक जाएँगूँगों की हुकूमत को अंधों ने सँभाला है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
ग़रीब दर-दर भटक रहे थे कहीं न हम को सुकूँ मिलाबना के अपना फ़क़ीर मुझ को ग़म-ए-जहाँ से छुड़ा दिया