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तमाम 'आलम में हम ने देखा उसी का जल्वा चमक रहा है

तसद्दुक़ अ’ली असद

तमाम 'आलम में हम ने देखा उसी का जल्वा चमक रहा है

तसद्दुक़ अ’ली असद

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    तमाम 'आलम में हम ने देखा उसी का जल्वा चमक रहा है

    ये उस की क़ुदरत का है तमाशा सदफ़ में गौहर दमक रहा है

    कहीं है नसरीं कहीं है वो गुल कहीं है लाला कहीं है सुम्बुल

    ख़ुद अपनी हम्द-ओ-सना में दिल वो बन के ग़ुंचा चटक रहा है

    फ़ज़ा-ए-बाग़-ए-जिनाँ में जा कर जो बन के बाद-ए-सबा चला वो

    तो उस की निकहत से गुल चमन में ख़ुतन में आहू भटक रहा है

    उठा के ग़फ़लत का दिल से पर्दा जो लौस दुनिया को हम ने छोड़ा

    तो चश्म-ए-बातिन से उस को देखा हर एक सूरत चमक रहा है

    कहीं है 'आशिक़ कहीं है दिलबर करिश्मा लाखों हमीं ने देखा

    हमारे दिल में मकाँ बना कर ब-रंग-ए-बुलबुल चहक रहा है

    का'बा में है दैर में है है हरम में बुत-कदे में

    तो देख उस को वो है तुझी में सुहा अ'बस ही भटक रहा है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Rooh-e-Sama, Part 2 (पृष्ठ 424)

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