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शहर सुनसान है किधर जाएँख़ाक हो कर कहीं बिखर जाएँ
जो ज़ुल्फ़-ए-पयम्बर बिखर जाएगीमो'अत्तर दो-'आलम को कर जाएगी
क्या तमाशा है तेरी ज़ुल्फ़ बिखर जाने सेहोश वाले भी नज़र आते हैं दीवाने से
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब कामस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई
ख़याल-ओ-ख़्वाब की सूरत बिखर गया माज़ीन सिलसिले न वो क़िस्से न अब वो अफ़्साने
चाँदी बदली से निकल कर छुप रहा हो जिस तरहऐसा चेहरा लगता है ज़ुल्फ़ें बिखर जाने के बा'द
किसी की ज़ुल्फ़ बिखरे और बिखर कर दोश पर आएदिल-ए-सद-चाक उलझे और उलझ कर शान: हो जाए
कोई अजनबी-सा दयार था यही वक़्त होगा पहल गएसर-ए-रह-गुज़र वो नज़र मिली तो फ़ज़ा में फूल बिखर गए
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