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कलाम
कहो बुलबुल से ले जावे चमन से आशियाँ अपनापढ़े गर सद हज़ार अफ़्सूँ न होगा बाग़बाँ अपना
शाह आलम सानी
कलाम
किसी से सीख ले बुलबुल सरापा दास्ताँ रहनाहै नंग-ए-'इश्क़ हाल-ए-दिल का मोहताज-ए-बयाँ रहना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
कलाम
यार था गुलज़ार था मय थी फ़ज़ा थी मैं न थालाएक़-ए-पा-बोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
मिर्ज़ा अबुल मुज़फ़्फ़र
कलाम
अज़ल में जो सदा मैं ने सुनी थी कैफ़-ए-मस्ती मेंवही आवाज़ अब तक सुन रहा हूँ साज़-ए-हस्ती में
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
ठान ली मैं ने भी साक़ी यहीं मर जाने कीकितनी दिलकश हैं फ़ज़ाएँ तेरे मय-ख़ाने की