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कलाम
कभी फ़ानूस-ए-काफ़ूरी में छुप कर जगमगाता हैकभी वीरानों खेतों पर घटाएँ बन के छाता है
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
दर-हक़ीक़त इंक़िलाब-ए-ज़िंदगी ए'जाज़ हैज़र्रा ज़र्रा ख़ाक-ए-हस्ती का जहान-ए-राज़ है
माहिरुल क़ादरी
कलाम
’आलम-ए-सूरत का छुप जाना 'अयाँ हो जाएगाये मुरक़्क़ा' इक दिन आँखों से निहाँ हो जाएगा