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कलाम
मुबारक ऐ दिल-ए-शैदा कि वस्ल-ए-दिल-रुबा होगाबहार-ए-’ऐश आती है ग़म-ए-फ़ुर्क़त हुआ होगा
सफ़ीर बलगिरामी
कलाम
शब-ए-वस्ल-ए-सनम में तो न आए मुर्ग़-ए-सहर चलाहमारा लुत्फ़ जाता है तिरी क्यूँ जान जाती है
सफ़ीर बलगिरामी
कलाम
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई