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बहर-ए-हस्ती कोई सराब नहींज़िंदगी ज़िंदगी है ख़्वाब नहीं
इक सरापा कि रंज-ओ-यास हैं हमदर्द-ए-दिल मोनिस-ए-जवानी है
गुल्हा-ए-तबस्सुम पे नज़र डालने वालेउन होंठों में पिन्हाँ हैं कई ख़ुल्द-ए-बरीं और
घटा बन के 'अलताफ़' रिंदों पे बरसेगुलिस्ताँ में बाद-ए-सबा बन गए तुम
तीरा-बख़्ती मुझे आग़ोश में लेगी बढ़ करजल्वा-हा-ए-रुख़-ए-महताब कहाँ फिर होंगे
जाम-ए-शराब हाथ में पहलू में आफ़ताबदुनिया-ए-कैफ़-ओ-नूर पे लहरा रहा हूँ मैं
साहिल को पा सकी न कभी कश्ती-ए-हयातदरिया-ए-आरज़ू के किनारों को क्या हुआ
तुझ को जल्वा-गह-ए-नाज़ में रोका थामाहौसला देख लिया अपने तमाशाई का
सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गईदुनिया-ए-ए'तिबार को ठुकरा के पी गया
अब उम्मीद-ए-चश्म-ए-उल्फ़त बे-महलना-मुरादी वज्ह-ए-’इबरत हो गई
'औघट' अब चुप साधिए कि बात न पहुँचे दूरलुटा बैठा वो नक़्द-ए-जाँ किसी की रू-नुमाई में
बाक़ी है आधी रात मगर इस का क्या जवाबघबरा के वो ये कहते हैं वक़्त-ए-अज़ाँ है अब
लग चली बाद-ए-सबा क्या किस मस्ताने सेझूमती आज चली आती है मय-ख़ाने से
ग़म-ए-इ'श्क़ में मज़ा था जो उसे समझ के खातेये वो ज़हर है कि आख़िर मय-ए-ख़ुश-गवार होता
यूँ न हो बर्क़-ए-तजल्ली बेताबमिल गया रँग तमाशाई का
पर्दा रुख़-ए-महबूब से उल्टा है हवा नेये फूल खिलाया है नया बाद-ए-सबा ने
ज़माने में हैं यादगार-ए-ज़मानावफ़ाएँ हमारी जफ़ाएँ तुम्हारी
'अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होताकभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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