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कलाम
जो शबाब आया तो क्या कहूँ वो रात के जैसे बदल गएमग़रूर हुए हैं वो इस तरह जज़्बात के जैसे बदल गए
हुनर सिल्लोडी
कलाम
आ'लम में जल्वा करते हैं किस किस हुनर से आपनूर-ए-नज़र में रहते हैं मख़्फ़ी नज़र से आप
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
हुनर सिल्लोडी
कलाम
ख़ुदा-ए-लम-यज़ल का दस्त-ए-क़ुदरत तू ज़बाँ तू हैयक़ीं पैदा कर ऐ ग़ाफ़िल कि मग़्लूब गुमाँ तो है
अल्लामा इक़बाल
कलाम
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्याज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या