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कलाम
वो 'सौदा-गर' है जिस ने नक़्द-ए-जाँ अपनी लुटा दे करजमाल-ए-पाक हक़ पाया है शक्ल-ए-मीरज़ाई मैं
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
उस का रुख़-ए-ज़ेबा मेरी आँखों में बसा हैवो हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद समाया मिरे दिल में
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
तनज़ीह मिस्ल-ए-बहर है तश्बीह उस की लहर हैदोनों का एक दिखना बहुत मुश्किल भी है आसान भी है
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
सुनते हैं कि है इक 'सौदा-गर' था ख़ाक रह-ए-कू-ए-दिलबरकफ़-ए-पा से तिरे इक्सीर बना सनमा सनमा सनमा सनमा
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
है ज़ात कंज़-ए-मख़्फ़ी ज़ात-ए-बक़ा-ए-मिर्ज़ापाया जो 'इल्म-ए-मुतलक़ अपने में आए मिर्ज़ा
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन