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कलाम
लेकर जहाँ के हुस्न को शम्स-ओ-क़मर को क्या करूँमुझ को तो तुम पसंद अपनी नज़र को क्या करूँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
जाम-ए-गदाई हाथ में लिए शाम सवेरे फिरते हैंशम्स-ओ-क़मर ये दोनों सिपाही हुक्म के फेरे फिरते हैं
जान पानीपती
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
क़ुम बि-इज़्नी शम्स-ए-दीं का हक़ है कहना ऐ 'असद'ग़ैन जब गुम हो गई तब 'ऐन का इज़हार है
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
हम हों मा'दूम जहाँ आप हों मुम्किन ही नहींकब ज़िया शम्स से होती है जुदा क्या कहिए
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
क़ुम-बि-इज़्नी और अनल-हक़ कहती उन की क्या मजाल'शम्स' और 'मंसूर' के मुँह में ज़बाँ तू ही तो था
अज्ञात
कलाम
निकल कर जा नहीं सकते कहीं ख़ुर्शीद से ज़र्रेजो सिमटे शम्स में रहते हैं फैले ज़िल में रहते हैं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं