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कलाम
वस्ल है पर दिल में अब तक ज़ौक़-ए-ग़म पेचीदा हैबुलबुला है ऐ'न दरिया में मगर नम-दीदा है
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
ज़रा और मुस्कुरा लूँ दिल-ओ-जाँ शिकार-ए-ग़म हैंकि मसर्रतों के लम्हे मेरी ज़िंदगी में कम हैं
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
सुने कौन क़िस्सा-ए-दर्द-ए-दिल मेरा ग़म-गुसार चला गयाजिसे आश्नाओं का पास था वो वफ़ा-शि’आर चला गया
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाएये दीवानों की महफ़िल है कोई रुस्वा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलमतिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
तेरा ग़म रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी हैयही मेरी बंदगी है यही मेरी ज़िंदगी है
बाक़ीर शाहजहांपुरी
कलाम
फँसा जब से दिल-ए-शैदा सनम की ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ मेंबसर होती है हर शब एक ही ख़्वाब-ए-परेशाँ में
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
दिल-ए-शैदा को जिस ने तुर्रा-ए-दस्तार से बाँधागोया मंसूर को बे-रेस्मान-ए-दार से बाँधा