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Sufinama

किसी से भी ग़म-ए-दिल का मुदावा हो नहीं सकता

राज़ आरफ़ी

किसी से भी ग़म-ए-दिल का मुदावा हो नहीं सकता

राज़ आरफ़ी

MORE BYराज़ आरफ़ी

    किसी से भी ग़म-ए-दिल का मुदावा हो नहीं सकता

    जो तुम चाहो तो फिर मेहरबाँ क्या हो नहीं सकता

    ज़माने भर का हो कर तुम से हो निस्बत ये मुम्किन है

    तुम्हारा हो के फिर कोई किसी का हो नहीं सकता

    अज़ल में मैं ने देखा है तुम्हारे हुस्न-ए-रंगीं को

    किसी सूरत मिरी आँखों को धोका हो नहीं सकता

    हक़ीक़त क्या है दुनिया की वो चाहें दीन भी दे दें

    सख़ी के दर से ख़ाली लौट जाना हो नहीं सकता

    बुरा हूँ जिस क़दर 'राज़' ये मैं जानता ख़ुद हूँ

    मगर उन को मिरा मिटना गवारा हो नहीं सकता

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kalaam-e-Manzoor Aarfi (पृष्ठ 129)

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