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कलाम
मैं कोझी मेरा दिलबर सोहणा, क्यूँकर उस नूँ भावा हूविहड़े साडे वड़दा नाहीँ लक्ख वसीलें पावाँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
क्या दिल कहूँ दिलबर कहूँ या जाँ कहूँ या क्या कहूँया मन कहूँ मोहन कहूँ जानाँ कहूँ या क्या कहूँ
सादिक़ु अली शाह
कलाम
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता ने मुझे रौज़ा पे जाने न दियाचश्म-ओ-दिल सीने कलेजे से लगाने न दिया
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
वो मस्त-ए-नाज़ आता है ज़रा हुशियार हो जानायहीं देखा गया है बे-पिए सरशार हो जाना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
कोई जाने तो क्या जाने वो दिखता है हज़ारों मेंसितम-गारों में ’अय्यारों में दिल-दारों में यारों में
दाग़ देहलवी
कलाम
ज़ाहर वेखां जानी ताईं नाले अंदर सीने हूबिरहों मारी नित फ़िरां मैं हस्सण लोक नाबीने हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आंधियों और मौज-ए-तूफ़ाँ से गुज़र जाने के बा'दनाव डूबी है मिरी दरिया उतर जाने के बा'द
साग़ार सिल्लोडी
कलाम
’आलम-ए-सूरत का छुप जाना 'अयाँ हो जाएगाये मुरक़्क़ा' इक दिन आँखों से निहाँ हो जाएगा