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कलाम
हम नहीफ़ों से गुरेज़ आप को दरकार नहींपहलू-ए-गुल में हुआ करते हैं क्या ख़ार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
अहल-ए-दुनिया की ग़रज़ लगती है जब दरवेश सेकहते हैं अपने हुसूल-ए-मुद्द’आ के वास्ते
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
मैं नफ़ी इसबात से कुछ भी नहीं रखता ग़रज़जिस में मशग़ूल हूँ वो मश्ग़ला कुछ और है