इस्तादा है अज़ल से क़ादिर निशान तेरा
रोचक तथ्य
یہ غزل خانقاہ امجدیہ، سیوان اور دیگر ذیلی خانقاہوں میں رسمِ نشاں کے وقت قوالوں کے ذریعہ پڑھا جاتا ہے۔
इस्तादा है अज़ल से क़ादिर निशान तेरा
और ता-अबद रहेगा ज़ाहिर निशान तेरा
जो बा निशाँ बने थे उन के निशाँ हैं पीछे
आगे खड़ा है सब से बढ़ कर निशान तेरा
जूयाँ हैं जो निशाँ के उन को निशाँ बता दे
रखता है उन को हर दम मुज़्तर निशान तेरा
है तेरी अहदिय्यत पर हम को यक़ीन-ए-कामिल
इक दिन ज़रूर होगा घर-घर निशान तेरा
है अहदिय्यत नुमायाँ उस के अलिफ़ से बे-शक
देता तिरी ख़बर है मुख़्बिर निशान तेरा
फिर क्या ग़रज़ 'असद' को दैर-ओ-हरम से शाहा
जब है वुजूद उस का बरतर निशान तेरा
- पुस्तक : Rooh-e-Sama, Part 2 (पृष्ठ 12)
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