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कलाम
न सवाल है तख़्त-ओ-ताज का न क़सम से ज़र का ख़याल हैमिरे चारा-गर मिरे मेहरबाँ तिरे एक का सवाल है
फ़राज़ वारसी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला'इश्क़ अपने मुजरिमों को पा-ब-जौलाँ ले चला
हसन रज़ा बरेलवी
कलाम
लेकर जहाँ के हुस्न को शम्स-ओ-क़मर को क्या करूँमुझ को तो तुम पसंद अपनी नज़र को क्या करूँ
अब्दुल हादी काविश
कलाम
नजात-ए-दाइमी है हुस्न वालों की निगाहों मेंजिसे आना हो आ-जाए मोहब्बत की पनाहों में